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उस्मान अजहरी ने ईद उल अजहा पर बुराइयां खत्म करने का दिया संदेश


बिलारी। बरेलवी मिशन से जुड़े इस्लामिक रिसर्चर मुहम्मद उस्मान अज़हरी एक खास अंदाज में ईदुल अज़हा के मौक़े पर क़ुर्बानी कनरे वालों से मुख़ातिब होते हुए कहते हैं क़ुर्बानी का जानवर क़ुर्बानी करने वालों से कुछ सवाल करता है -
पहला यह कि जैसे तुम मुझे क़ुर्बान करते वक्त मेरा मुंह अल्लाह के घर यानी क़िब्ले की तरफ तो करते हो वैसे ही अपना दिल अल्लाह की तरफ क्यूं नहीं करते? दूसरा यह कि क़ुर्बान करते वक्त इधर उधर तड़पने हिलने से बचाने के लिए जैसे मुझे रस्सी से जकड़ कर बांधते हो वैसे अपना नफ्स गुनाह करने से बाज़ रखने के लिए कभी क्यूं नहीं बांधते? 
तीसरा यह कि मैं तुम्हारे प्यारे माल से खरीदा या घर पाला प्यारा जानवर होता हूं आप अल्लाह के हुक्म से मुझे तो क़ुर्बान कर देते हो लेकिन अल्लाह के हुक्म से अपने अंदर की बुराईयों या शैतानियों को क्यूं क़ुर्बान नहीं करते?
चौथा यह कि ईद के दिन मेरा गोश्त जैसे दोस्तों और गरीबों को बांटते खिलाते हो इसी तरह पूरे साल इन सब लोगों का ख्याल आप क्यूं नहीं रखते?
पांचवां यह कि मुझे क़ुर्बान करके अल्लाह की इबादत का हक़ तो अदा करते हो लेकिन अपने ऊपर आने वाले बंदों के हक़ अदा क्यूं नहीं करते हो?
मुहम्मद उस्मान अज़हरी ने कहा कि जब तक क़ुर्बानी के उस बेज़ुबान जानवर की तरफ से रखे गये इन सवालात पर ग़ौर करते हुए सही जवाब के साथ क़ुर्बानियां नहीं की जाएंगी तब तक क़ुर्बानियों की रस्में तो अदा हो सकती हैं क़ुर्बानियों का अस्ली हक़ अदा नहीं हो सकेगा।
इसके अलावा उन्होंने अपने अंदाज में बयान किया है कि
ईदे  क़ुर्बां  आ  रही  हर  एक  साल,
जानवर  मख़सूस  करते  हम हलाल।
क़ुर्बान जब करते कोई हम जानवर,
होते  ख़ुश  करते  नहीं  कोई मलाल।
वैसे  जब  होता  ज़िबाह  वो जानवर,
हमसे  करता  है ज़रूरी कुछ सवाल।
जैसे मुझ को आप करते क़िब्लारू,
वैसे क्यूं  दिल में नहीं रब का ख़याल।
करते  बेबस  जैसे  मुझको  बांध कर,
नफ्स बेबस करने क्यूं डाला ना जाल।
मुझको  अच्छा  जानकर  क़ुर्बां किया,
शैतानियों का क्यूं नहीं करते क़िताल।
सब  को  मेरा  गोश्त देते जैसे आज,
क्यूं  नहीं  ईसार  यह  रखते  बहाल।
इन  जवाबों  के  बिना  क़ुर्बानियां,
उस्मान  कुछ  फैज़ान  देंगी  हैं मुहाल।

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