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जब टूटने लगे हिम्मत तो बस यह याद रखना बिना हौसलों के हासिल तख्तो ताज नहीं होते ढूंढ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते।


न किसी का फेंका हुआ मिले,

न किसी से छीना हुआ मिले,

मुझे बस मेरे नसीब में, लिखा हुआ मिले,

न मिले यह भी, तो कोई गम नहीं,

मुझे बस मेरी मेहनत का, किया हुआ मिले।”

परमपिता परमेश्वर ने इस पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति से पूर्व प्रकृति की उत्पत्ति की लेकिन कहीं ना कहीं ईश्वर को एक ऐसे सजीव की जरूरत थी जो भावपूर्ण हो जो किसी के दर्द को समझे तब उत्पत्ति हुई मानव की मानव से मानव ने जन्म लिया हमारी इस धरती पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया है और बीड़ा उठाया है विश्व सेवा का हमारे देश में ऐसे भी संगठन है जिनका उद्देश्य मानव की सेवा है यह सेवा उतनी आसान नहीं होती जितना इसको समझा जाता है मानव की पीड़ा को समझने के लिए विशेष भावनाओं की जरूरत होती है यह भावना ईश्वर द्वारा मानव को दिया गया एक उपहार है यह भावना कुछ गिने-चुने लोगों को ही प्रदान की जाती है ईश्वर द्वारा मानव सेवा का किया गया निर्णय सर्वोपरि है ईश्वर के इस निर्देश को हर प्राणी नहीं समझता और जो समझ लेता है वह महापुरुष की श्रेणी में आ जाता है बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि यह धरती अच्छे कर्मों पर चल रही है जिस दिन यह अच्छे कर्म नष्ट हो जाएंगे उस दिन यह धरती भी नष्ट हो जाएगी वास्तव में यह तथ्य सत्य भी है मानव सेवा सिर्फ मानव की सेवा ही नहीं होती इसमें समाहित होता है संपूर्ण क्षेत्र समाज राष्ट्र और विश्व का उद्धार ऐसे महापुरुष विरला ही जन्म लेते हैं हर व्यक्ति समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को उतनी अच्छी तरह से नहीं समझता जितनी कि उसे समझना चाहिए जो समाज सेवा के लिए समर्पित हुए हैं जिनका जीवन समाज के लिए समर्पित होता है और जो दूसरों के शरीर में हो रहे दर्द को अपने शरीर मे महसूस करें उन्हें अर्चना शर्मा कहा जाता है।

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